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उसका दोष क्या है भाग - 4 15 पार्ट सीरीज

         उसका दोष क्या है (भाग-4)
                कहानी अब तक
   रमेश विद्या और रमा को लेकर लाइब्रेरी जाता है। लाइब्रेरी में ही वह विद्या के सामने अपना प्रेम प्रगट कर देता है।
                 अब आगे 
   विद्या का पूरा शरीर शून्य की स्थिति में पड़ा था। वह रमेश के हाथ को अपने हाथों के ऊपर से हटाना चाह रही थी, वह चाह  रही थी अपने हाथ ही खींच ले परन्तु खींच नहीं पा रही थी। बहुत कठिनाई से उसने धीरे से कहा  -  "
प्लीज छोड़ दीजिये मेरा हाथ कोई देख लेगा"।
   रमेश -  "अब सोच लीजिए और आप मुझे अवश्य बतलाइए आप मुझे स्वीकार  करती हैं या नहीं"– रमेश ने विद्या के हाथों को अपने बंधन से आजाद कर दिया।
     "अगर आप लोगों ने अखबार पढ़ लिया हो तो उन्हें हटा दूं यहां से ? मैं कुछ पत्रिकाएं लेकर आई हूं पढ़ने के लिए"।
   अचानक रमा की आवाज सुनकर विद्या  ने दृष्टि उठाकर देखा तो सामने रमा खड़ी थी उसके हाथ में कुछ पत्रिकाएं थीं। उसने पत्रिकाओं को टेबल पर रखाऔर स्वयं बैठ गई फिर कहा -   
   "विद्या मैंने कुछ किताबें चुनकर निकालने को बोल दिया है,तुम देख लेना वह ठीक है या कोई दूसरा चुनना है तुम्हें"।
   विद्या के मुंह से तो कुछ आवाज ही नहीं निकल रही थी। उसे लग रहा था जैसे किसीने फेवीकोल लगाकर उसके होठों को चिपका दिया है। वह घबड़ाहट के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। बहुत मुश्किल से उसके मुंह से निकला  - 
  "नहीं तूने जो चुना वही रहने दे"।
    रमेश उठ कर खड़ा हो गया और कहा -   " तुम लोग पढ़ो, मैं जा रहा हूं मुझे बहुत सारे काम निबटाने हैं"– और वह निकल गया। रमा पूछती रह गई -  
  "अरे अचानक कैसे भैया, अभी तो आप बैठ कर पढ़ रहे थे"?
लेकिन रमेश ने उसकी कोई बात नहीं सुनी और निकलता चला गया। रमा मुस्कुरा कर रह गई। विद्या का दिल घबड़ा रहा था,उसे लगा कहीं रमा ने सब कुछ देख तो नहीं लिया। आज उसका मन पढ़ने में भी नहीं लग रहा था। उसने रमा से कहा - 
     "चल हम लोग घर चलें"।
    रमा  -  "अरे अभी से; हम तो पूरा दिन यहां बिताने का कार्यक्रम तय करके आए थे। यह देखो मैंने कितनी सारी पत्रिकाएं ली हैं। हम प्रतियोगिताओं की भी तो तैयारी कर रही हैं,पढ़ना नहीं है क्या ? मैं तो नहीं जाने वाली अभी,मुझे तैयारी करना है। मैंने बैंक का फॉर्म भरा है, उसके लिए मुझे पढ़ने की आवश्यकता है। तेरा तो अभी समय है तू टीचिंग में जाना चाहती है। उसके लिए परीक्षा तो बी ए करने के बाद हौगी। वैसे भी तेरा तो रिजल्ट भी बहुत अच्छा रहा है,तेरा तो बी. एड.में सीधा नामांकन हो जाएगा। मेरा रिजल्ट इतना अच्छा नहीं हुआ है तो मैं कहां बी. एड. कर पाऊंगी। मुझे तो आगे प्रतियोगिता की तैयारी करनी ही है। चल बैठ तू भी कर तैयारी"।
  कह कर रमा ने उसके आगे जबरन एक पत्रिका रख दी पढ़ने के लिए। विद्या न चाहते हुए भी पत्रिका उलट-पुलट कर देखती रही और पढ़ने में मन लगाने का प्रयास करती रही। परंतु आज उसका मन पढ़ने में नहीं लग रहा था। उसके मस्तिष्क में बार-बार रमेश की कही बात चोट कर रही थी -
    "मैंने ईश्वर से आपको मांगा है!मैं आपको जीवनसाथी बनाना चाहता हूं ! आपका क्या विचार है!क्या आप मुझे पसंद करती हैं ! आप मुझे स्वीकार करेंगी ! अपने जीवन साथी के रूप में"?
यह वाक्य बार-बार उसके मस्तिष्क में ठोकर मार रहे थे। वह पढ़ने का सिर्फ दिखावा कर रही थी,पढ़ नहीं पा रही थी। बहुत मुश्किल से उसने एक घंटे बिताए,फिर घर वापस जा ने की जिद करने लगी।
  रमा बेमन से उठी फिर वे लोग अपने घर ले जाने के लिए किताबें इशु करवा कर और पत्रिकाएं वापस कर घर के लिए निकल गईं। घर आने के बाद भी रमा को रमेश  की कही बात बार-बार याद आ रही थी। वह उसके विचारों को झटकती परंतु फिर वह उसके दिल दिमाग में किसी घन के समान चोट करने लगता, और उसकी आवाज फिर गूँजने लगती-  
    "क्या आप मुझे स्वीकार करेंगी"?
रात में सोने के बाद सपने में भी उसने  रमेश को ही देखा। उसके सपने में भी आकर रमेश उससे कह रहा था -  
   "विद्या मैंने आपको मांगा है ईश्वर से, मैं आपको बहुत प्यार करता हूं। जिस दिन पहली बार देखा तभी से। मैं आपको जीवनसाथी बनाना चाहता हूं"।
कभी वह देखती रमेश के साथ कहीं घूम रही है। कभी देखती उसके साथ बातें कर रही है हंसते हुए। इन्हीं सपनों के बीच रात बीत गई। सुबह मां के जगाने पर उसकी नींद खुली। मां उसे जगाती हुई कह रही थी  - 
     "क्या बात है आज कॉलेज नहीं जाना क्या, इतनी देर तक सो रही है तू"!
    वह हड़बड़ा कर उठी और कॉलेज के लिए तैयार होने लगी। इस पूरे सप्ताह रमा के कहने के बाद भी एक दिन भी उसके घर नहीं गई। 
                 कथा जारी है।
                                    क्रमशः
   

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Nice parts

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